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गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय


मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार की समस्या को दूर किया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचित हैं। मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त हो जाते हैं। यहां जानिए  गायत्री मंत्र से जुड़ी खास बातें और

चमत्कारी उपाय...
मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान प्राप्ति, दैवीय कृपा प्राप्त करने के साथ ही सांसारिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए भी किया जा सकता है।
ये है गायत्री मंत्र: ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।

गायत्री मंत्र-
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
शास्त्रों में इसके जाप की विधि विस्तृत रूप से दी गई हैं। इस मंत्र को जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है।

इस मंत्र के जप से हमें यह दस लाभ प्राप्त होते हैं...
उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।

विद्यार्थीयों के लिए-
गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।

दरिद्रता के नाश के लिए-
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।

संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए...
किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए...
यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।

विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो...
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।

यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो...
यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।

जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।

किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए। गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।


महामृत्युञ्जय मंत्र


हामृत्युञ्जय मंत्र : "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र"
भक्ति में अविश्वास की कोई जगह नहीं होती।
 आस्था और भरोसा ही वह कारण है, जिनके बूते ही भक्त और भगवान का मिलन हो जाता है।
 धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं कि प्रेम और भाव ईश्वर को भी भक्त के पास आने को मज़बूर करती है।
भगवान शिव भी ऐसे ही देवता माने जाते हैं, जो भक्तो की थोड़ी ही उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव की प्रसन्नता के ही इन उपायों में महामृत्युञ्जय मंत्र को बहुत ही अचूक माना जाता है। यह मंत्र रोग, शोक, काल और कलह को दूर करने वाला माना गया है। शिव के इस मंत्र का अलग-अलग रूप और संख्या में जप बहुत ही असरदार माना जाता है। लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि भक्त पूरी पवित्रता के साथ परोपकार निस्वार्थ भावना रख शिव का ध्यान करे। 
शिव पुराण के मुताबिक जानिए, कितनी संख्या में शिव के इस महामंत्र को बोलने या जप करने से मनचाहे सुख पाने के अलावा क्या-क्या चमत्कार हो जाते हैं? तस्वीरों पर क्लिक करें -

जानें, कितनी बार महामृत्युञ्जय मंत्र बोलने पर क्या हो जाता है?
महामृत्युञ्जय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर हर तरह से पवित्र हो जाता है। यानी सारे दर्द, रोग या कलह दूर हो जाते हैं।
दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद जाती हैं।
तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है।
चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं।
पांच लाख महामृत्युञ्जय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
महामृत्युञ्जय मंत्र - मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है l ऋग्वेद का एक श्लोक है, यह त्रयंबक "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया l
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है, यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है
इसमें शिव की स्तुति की गयी है शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है।

मंत्र इस प्रकार है:-

" त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
Om tryambakaṃ 
  yajāmahe sugandhiṃ 
  puṣṭi-vardhanam
  urvārukam iva bandhanān 
  mṛtyor mukṣīya māmṛtāt "
 
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ
त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
इव= जैसे, इस तरह
बंधना= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति - से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से /अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्युर = मृत्यु से
मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा=
अमृतात= अमरता, मोक्ष

सरल अनुवाद:- 
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित 
करता है और वृद्धि करता है. ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग ("मुक्त") हों
अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों.

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