महामृत्युञ्जय मंत्र
महामृत्युमञ्जय मंत्र
: "मृत्यु को
जीतने
वाला
महान
मंत्र"
भक्ति में अविश्वास की कोई जगह नहीं होती।
 आस्था और भरोसा ही वह कारण है, जिनके बूते ही भक्त और भगवान का मिलन हो जाता है।
 धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं कि प्रेम और भाव ईश्वर को भी भक्त के पास आने को मज़बूर करती है। 
भगवान शिव भी ऐसे ही देवता माने जाते हैं, जो भक्तो की थोड़ी ही उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव की प्रसन्नता के ही इन उपायों में महामृत्युञ्जय मंत्र को बहुत ही अचूक माना जाता है। यह मंत्र रोग, शोक, काल और कलह को दूर करने वाला माना गया है। शिव के इस मंत्र का अलग-अलग रूप और संख्या में जप बहुत ही असरदार माना जाता है। लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि भक्त पूरी पवित्रता के साथ परोपकार व निस्वार्थ भावना रख शिव का ध्यान करे।  
शिव पुराण के मुताबिक जानिए, कितनी संख्या में शिव के इस महामंत्र को बोलने या जप करने से मनचाहे सुख पाने के अलावा क्या-क्या चमत्कार हो जाते हैं? तस्वीरों पर क्लिक करें - 
जानें, कितनी बार महामृत्युञ्जय मंत्र बोलने पर क्या हो जाता है?
महामृत्युञ्जय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर हर तरह से पवित्र हो जाता है। यानी सारे दर्द, रोग या कलह दूर हो जाते हैं।
दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद आ जाती हैं।
तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है।
चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं।
पांच लाख महामृत्युञ्जय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
महामृत्युञ्जय मंत्र - मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है l ऋग्वेद का एक श्लोक है, यह त्रयंबक "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया l
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है, यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है ।
इसमें शिव की स्तुति की गयी है । शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है। 
मंत्र इस प्रकार है:-
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
" Om tryambakaṃ 
  yajāmahe
  sugandhiṃ 
puṣṭi-vardhanam
  urvārukam iva bandhanān puṣṭi-vardhanam
mṛtyor mukṣīya māmṛtāt "
महा
मृत्युंजय
मंत्र
का
अक्षरशः
अर्थ
त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
इव= जैसे, इस तरह
बंधना= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्युर = मृत्यु से
मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा= न
अमृतात= अमरता, मोक्ष
सरल अनुवाद:-
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित
करता है और वृद्धि करता है. ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग ("मुक्त") हों,
अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों.



