चित्र-वास्तु. हमारे जीवन में चित्रों का बड़ा महत्व है। पूर्वकाल में घर की दीवारों पर फ्रेस्को पेंटिंग की जाती थी। हाथ से बनाए गए चित्रों और मांडनों को चिपकाया जाता था। मांगलिक, शुभ कार्यो में देवचित्रों को प्रधानता से प्रयोग में लाया जाता था। विवाह, यज्ञोपवीत, तीर्थाटन से वापसी जैसे प्रसंगों पर चित्रकारों को न्यौतकर चित्रांकन कराया जाता था। ये चित्र घर में मंगल-मांगल्य की सृष्टि करते थे।चित्रों के प्रसंग में यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी तरह से विकृत चित्र अथवा रंगविहीन रेखाचित्र को कभी दीवार पर नहीं लगाएं। वास्तु ग्रंथों में मयमतम्, समरांगण सूत्रधार, मानसार आदि में चित्रों के संबंध में कई निर्देश दिए गए हैं।
इसी आधार पर अपराजितपृच्छा, वास्तुमंडन व राजवल्लभ में भी कहा गया है कि विकृत, अंग-भंग वाले, युद्ध के दृश्य वाले वीभत्स चित्र, नग्न, अश्लील, मांसभक्षी श्वान, सर्प, नकुल, सिंह आदि चौपायों के चित्र घर में वर्जित हैं।
घर में ऐसे ही चित्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए जिनसे प्रेम, सहिष्णुता, आस्था का उदय होता हो। प्रेरक चित्र बहुत शुभ हैं। ऐसे धार्मिक चित्रों में युद्ध दृश्य विहीन श्रीकृष्ण द्वारा अजरुन को गीतोपदेश, रास मंडल, ध्यानस्थ शिव, सौम्य रूप में विष्णु व किसी देवस्थान का छायाचित्र भी शुभ है।
प्रकृति दर्शन करवाने वाले हरियाली, झरनों व पानी के दृश्य भी शुभ हैं। यदि परिवार के पूर्वजों की तस्वीर लगानी हो तो उसे घर में ऐसे स्थान पर लगाएं, जहां से पूरे घर पर निगाह पड़ती हो। नरसिंहपुराण में देवताओं के पट्टचित्र के पूजन और दर्शन से इष्टसिद्धि करने का उल्लेख है। वैसे घर की दीवारों पर अधिक चित्र नहीं लगाने चाहिए।
चित्र कब लगाएंअश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिजित, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा नक्षत्र और बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार के साथ-साथ द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी एवं पूर्णिमा तिथियां चित्रकला और चित्रों के संयोजन के लिए शुभ हैं। यदि देवी-देवताओं के चित्र लगाना हों तो इन देवताओं के वार, तिथि भी ग्रहण की जा सकती है किंतु इसके लिए पूर्वाह्न् का समय शुभ है।कहां कैसे चित्र हों
दुकान:बैठी हुई लक्ष्मी का चित्र, जिसके गज सूंड से जलाभिषेक करते हों, श्रीयंत्र और आसनस्थ लेखक-गणोश।
बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान :संसार का नक्शा, कोई झरना, गीतोपदेश और तैरती मछलियां।
अध्ययन कक्ष व शिक्षण संस्था
:उपदेश करते ऋषियों व महापुरुषों के आवक्ष चित्र, सुलेख वाले अक्षर, ब्राrाी, शारदा व देवनागरी लिपि के प्रदक्षिण अर्थात् पूर्व से दक्षिण की ओर लिखे सद्वाक्य।