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Vastu dwara Pardo ka chayan


घर के इंटीरियर में परदों की विशेष भूमिका है।
अलग-अलग रंग के परदे घर को और भी ज्यादा खूबसरत बनाने में विशेष महत्व है।
घर में सही रंग के परदे लगाकर आप अपने घर के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।
साथ ही अनुकूल रंग के परदे लगाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियां अनुकूल होने लगाती है।
- परदे हमेशा दो पर्तो वाले लगाएं।
- पश्चिम दिशा में यदि परदें लगाना हो तो सफेद रंग के परदे लगाएं।
-उत्तर दिशा के कमरे में नीले रंग के परदे लगाएं।
-दक्षिण दिशा के कोने का कमरा हो तो लाल रंग के परदे उपयुक्त रहेंगे।
-पूर्व दिशा का कमरा हो तो हरे रंग के परदे ठीक रहेंगे।
- पूर्वी कोने में यदि कमरा हो तो हल्के पीले या ओरेंज रंग के परदे लगाएं।

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय


वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय


कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।
पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06से 08बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।
पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।
पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है। इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें।
खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।
घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले, तिजोरी आदि में नहीं रखें, सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा।
घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए।
घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति बनी रहेगी।
भवन के चारों ओर जल या गंगा जल छिड़कें।
घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें।
किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।
घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।
घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।
शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है।
भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए।


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चित्र-वास्तु. हमारे जीवन में चित्रों का बड़ा महत्व है। पूर्वकाल में घर की दीवारों पर फ्रेस्को पेंटिंग की जाती थी। हाथ से बनाए गए चित्रों और मांडनों को चिपकाया जाता था। मांगलिक, शुभ कार्यो में देवचित्रों को प्रधानता से प्रयोग में लाया जाता था। विवाह, यज्ञोपवीत, तीर्थाटन से वापसी जैसे प्रसंगों पर चित्रकारों को न्यौतकर चित्रांकन कराया जाता था। ये चित्र घर में मंगल-मांगल्य की सृष्टि करते थे।चित्रों के प्रसंग में यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी तरह से विकृत चित्र अथवा रंगविहीन रेखाचित्र को कभी दीवार पर नहीं लगाएं। वास्तु ग्रंथों में मयमतम्, समरांगण सूत्रधार, मानसार आदि में चित्रों के संबंध में कई निर्देश दिए गए हैं।

इसी आधार पर अपराजितपृच्छा, वास्तुमंडन राजवल्लभ में भी कहा गया है कि विकृत, अंग-भंग वाले, युद्ध के दृश्य वाले वीभत्स चित्र, नग्न, अश्लील, मांसभक्षी श्वान, सर्प, नकुल, सिंह आदि चौपायों के चित्र घर में वर्जित हैं।
घर में ऐसे ही चित्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए जिनसे प्रेम, सहिष्णुता, आस्था का उदय होता हो। प्रेरक चित्र बहुत शुभ हैं। ऐसे धार्मिक चित्रों में युद्ध दृश्य विहीन श्रीकृष्ण द्वारा अजरुन को गीतोपदेश, रास मंडल, ध्यानस्थ शिव, सौम्य रूप में विष्णु किसी देवस्थान का छायाचित्र भी शुभ है।
प्रकृति दर्शन करवाने वाले हरियाली, झरनों पानी के दृश्य भी शुभ हैं। यदि परिवार के पूर्वजों की तस्वीर लगानी हो तो उसे घर में ऐसे स्थान पर लगाएं, जहां से पूरे घर पर निगाह पड़ती हो। नरसिंहपुराण में देवताओं के पट्टचित्र के पूजन और दर्शन से इष्टसिद्धि करने का उल्लेख है। वैसे घर की दीवारों पर अधिक चित्र नहीं लगाने चाहिए।

चित्र कब लगाएंअश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिजित, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा नक्षत्र और बुधवार, गुरुवार शुक्रवार के साथ-साथ द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी एवं पूर्णिमा तिथियां चित्रकला और चित्रों के संयोजन के लिए शुभ हैं। यदि देवी-देवताओं के चित्र लगाना हों तो इन देवताओं के वार, तिथि भी ग्रहण की जा सकती है किंतु इसके लिए पूर्वाह्न् का समय शुभ है।कहां कैसे चित्र हों

दुकान:बैठी हुई लक्ष्मी का चित्र, जिसके गज सूंड से जलाभिषेक करते हों, श्रीयंत्र और आसनस्थ लेखक-गणोश।

बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान :संसार का नक्शा, कोई झरना, गीतोपदेश और तैरती मछलियां।

अध्ययन कक्ष शिक्षण संस्था :उपदेश करते ऋषियों महापुरुषों के आवक्ष चित्र, सुलेख वाले अक्षर, ब्राrाी, शारदा देवनागरी लिपि के प्रदक्षिण अर्थात् पूर्व से दक्षिण की ओर लिखे सद्वाक्य।


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